आखरी उत्तराधिकारी
****************************************
बड़ी नेक थी इन्दिराजी,
एक नेता के रूप में।
बड़ी सतर्क थी इन्दिराजी,
एक शासक के रूप में।।
था हाथों में उनके–
भारत का संविधान।
था देश के खातिर,
उनको बड़ा अभिमान।।
थी इन्दिराजी विराजमान,
दिल्ली के आसन पर।
थी एक शक्ति के रूप में,
दिल्ली के आसन पर।।
परन्तु! रक्षक ही भक्षक बने,
हमेशा के लिए मिटा दिया उन्हें।
इकतीस अक्टूबर चौरासी को–
दिल्ली के आसन से हटा दिया उन्हें।।
लेकिन, इन्दिराजी भी एक-
वीर नीतिज्ञा थी कोई कम नहीं।
चाणक्य और श्रीकृष्ण जैसों के
समतुल्य थी कोई कम नहीं।।
बिठा चली दिल्ली के आसन पर
अपना उत्तराधिकारी राजीव को।
और शासन के सौदागर फिर
तांकते रह गये- दिल्ली के आसन को।।
******************************
रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=
====*उज्जैन (मध्यप्रदेश)*===
******************************