आक्रोश – कहानी
विजय को बचपन से ही खेलकूद का शौक था | वह अपने घर में दो बड़ी बहनों के बाद सबसे छोटा था | पिता सब्जी बेचने का ठेला चलाकर अपने घर का गुजारा किसी तरह से कर रहे थे | विजय का सपना था कि वह किसी तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक धावक के रूप में अपनी छवि बना सके तो घर में किसी प्रकार की कमी न रहे और अपनी बहनों को भी पढ़ा – लिखाकर उनका भविष्य भी सुरक्षित कर सकूँ |
तीनों भाई – बहन एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हुए अपने सपनों को साकार करने का सपना देखते थे | विजय का पढ़ाई के प्रति कोई ख़ास रुझान नहीं था | जब भी स्कूल की छुट्टी होती वह अपने पिता के साथ सब्जी का ठेला ले सब्जी बेचने चला जाता | उसकी तेज धावक बनाने की ललक ने उसे भीतर से उर्जावान बनाए रखा | वह रोज सुबह दौड़ लगाने जाता | रोज वह करीब आठ से दस किलोमीटर दौड़ लगाता | घर के लोगों ने कई बार समझाया कि गरीबों को कोई नहीं पूछता इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो | पर विजय पर किसी की बात का कोई असर नहीं होता था | वह अपनी धुन का पक्का था |
अब विजय ने रो – धोकर दसवीं पास कर ली और वह खुद को राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर के लिए तैयार करने लगा | उसने बहुत कोशिश की पर उसे कोई मौका न मिला | उसे भी लगने लगा कि घर के सभी लोग सही कहते थे कि छोटे और गरीब लोगों को कोई नहीं पूछता | उसे भी अपने प्रयासों से निराशा होने लगी | उसके भीतर आक्रोश जन्म लेने लगा |
एक दिन सुबह वह दौड़ लगा रहा था कि दौड़ते – दौड़ते वह थक गया और सड़क के किनारे बैठकर सुबक – सुबक कर रोने लगा | उसे रोते हुए उसके स्कूल के एक शिक्षक यादव जी ने देख लिया और उससे रोने का कारण पूछा | विजय ने शालीनता से जवाब दिया | शिक्षक यादव जी को विजय के लिए कुछ करने की इच्छा हुई | उन्होंने विजय को शाम को अपने घर आने को कहा | विजय शाम होते ही उनके घर जा पहुंचा |
यादव जी ने बड़े प्यार से विजय को समझाया और कहा कि तुम अपने आपको किस स्तर पर देखते हो | क्या राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर | विजय ने पूरे आत्मविश्वास से खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का धावक सिद्ध करने का विश्वास दिलाया | यादव जी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं का पूरा – पूरा विवरण गूगल पर खोज कर निकाल लिया | उन्होंने अगले दिन विजय को सुबह मिलने को कहा | विजय सुबह होते ही यादव सर के पास पहुँच गया | चूंकि विजय एक छोटे से कस्बे में रहता था सो यादव जी उसे पास के जिले में बने बड़े से खेल के मैदान पर ले गए | खेल का मैदान देखते ही विजय को अपने सपने साकार होते दिखने लगे |
यादव जी ने विजय को अलग – अलग दौड़ के लिए तैयार रहने के लिए कुछ समय दिया और कहा कि हम रुक – रूककर अलग – अलग दौड़ को रिकॉर्ड करेंगे | और देखंगे कि तुम ये सभी दौड़ अंतर्राष्ट्रीय समय के भीतर कर पाते हो या नहीं | विजय को उन्होंने प्रेरित किया कि तुम्हें आज अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करके दिखाना होगा | ताकि तुम्हें भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने के अवसर मिल सकें | विजय ने कहा कि इस मैदान पर दौड़ने से मुझे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौके कैसे मिल सकते हैं | इस पर यादव जी ने कहा कि वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो | और तैयार हो जाओ |
सुबह से दोपहर तक विजय ने अलग – अलग दौड़ पूरी कीं | यादव जी ने उन सभी दौड़ों को रिकॉर्ड किया | घर आकर उन्होंने उन सभी वीडियो को एक बार सही तरीके से देखा और अंत में एक नतीजे पर पहुंचे | उनके चहरे पर एक खुशनुमा मुस्कान थी | जो विजय के विजय अभियान को दिशा दे रही थी |
अगले दिन सुबह होते ही पूरे देश में हलचल मच गयी | रातों – रात विजय की दौड़ के सभी वीडियो वायरल हो गए | पत्रकार विजय के घर के बाहर कैमरे लेकर विराजमान हो गए | घर के बाहर भीड़ देखकर विजय के पिता को कुछ समझ नहीं आया | पत्रकार विजय के पिता से विजय को बुलाने के लिए कहने लगे | विजय के पिता ने विजय को बाहर बुलाया तो उसके भी कुछ समझ न आया | पत्रकार विजय का इंटरव्यू करने लगे | पर विजय कुछ भी बोलने में सक्षम नहीं था | तभी यादव सर वहां आये और उन्होंने विजय की योग्यता के बारे में पत्रकारों को बताया | देश के सभी चैनल विजय की तारीफ़ के पुल बाँधने लगे और सरकार से प्रश्न पूछने लगे कि एक होनहार धावक को मौका क्यों नहीं दिया गया |
विदेश से भी कंपनी के लोग आने लगे और विजय को स्पोंसर करने की बात करने लगे | किन्तु विजय ने अपने देश के लिए खेलने को तवज्जो दी | उसने अपने जीवन में इस बदलाव के लिए यादव सर को धन्यवाद दिया | यादव सर को सरकार ने द्रोणाचार्य सम्मान के लिए नामित किया |
विजय का विजय अभियान चल निकला | घर में रौनक आ गयी | सरकार की तरफ से उसे आगे की तैयारी के लिए पैसा भेजा गया और उसके नाम अगले एशियाई खेलों , ओलिंपिक और कॉमनवेल्थ खेलों के लिए नामित किया गया | विजय का आक्रोश अब शांत हो चुका था |