*आक्रांता का अब भी दंश सहता है 【भक्ति-गीतिका】*
आक्रांता का अब भी दंश सहता है 【गीतिका】
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(1)
गुलामों की कोई भाषा न कोई धर्म रहता है
पुरातन सभ्यता के खँडहरों में रक्त बहता है
(2)
गुलामों की कहाँ उन में लिखी हैं सिसकियाँ-चीखें
विजेता की तरफदारी में ही इतिहास कहता है
(3)
भला उससे अभागा कौन होगा विश्व में कोई
हुआ आजाद ,आक्रांता का अब भी दंश सहता है
(4)
अभी भी नाम सड़कों के रखे हैं नाम पर उनके
लुटेरों की अभी भी चल रही देखो कि महता है
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महता = महत्ता ,महत्व
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451