आकाश
न जाने क्यों
खींचता है भीतर कहीं,
हमारे अंतर्मन की शून्यता को
झाँकता ये आकाश की शून्यता?
इसके निःसीम नीलाभ में
धुलते समस्त अहसास
न जाने कब और कैसे
मन के विस्तार को माप लेता?
काश!
हम भी पिघल पाते निर्बाध
इसके अनंत की गहराइयों में
और पी लेते इसकी
असीम शांति को….।
पूनम कुमारी(आगाज ए दिल)