आकाश महेशपुरी की कुछ कुण्डलियाँ
आकाश महेशपुरी की कुछ कुण्डलियाँ
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1-
जो प्रत्याशी बाटते, पैसे और शराब।
हैँ प्रत्याशी जान लो, सबसे वही खराब।
सबसे वही खराब, देश गन्दा जो करते।
इनको ठोकर मार, गलत धन्धा जो करते।
तभी बचेगा देश , सुनो सब भारत वासी।
करो उसे मतदान , सही हो जो प्रत्याशी।।
2-
बढ़ना पर ये सोच लो, लगे राह मेँ शूल ।
काँटोँ की भरमार है, हैँ थोड़े से फूल ।
हैँ थोड़े से फूल, भूल फिर कभी न करना ।
हो जाए ना नष्ट, कहीँ तेरा सब वरना ।
खोलो दोनो कान, सुनो मानो ये कहना ।
सदा बढ़े तूँ यार, नहीँ बिन देखे बढ़ना ।।
3-
गाने वाला मैँ यहाँ, लेकर आया दर्द।
अक्सर जो डरता रहा, होकर के भी मर्द।
होकर के भी मर्द, बना कायर था भाई।
भ्रष्टोँ का है राज, बन्द क्योँ थी कविताई।
लिखा न कोई छन्द, माह है जाने वाला।
नहीँ रहूँगा मौन, आज मैँ गाने वाला।।
4-
गरमी इतनी तेज है, मन से निकले आह ।
भारत मेँ है अब कहां, पहले जैसी छाँह ।
पहले जैसी छाँह, न पहले जैसा उपवन ।
अब रहता बेचैन, छाँव बिन सबका जीवन ।
बढ़ती है यह रोज, नहीँ आती है नरमी ।
कैसा है यह दौर, और यह कितनी गरमी।।
5-
कंगाली जो सामने, देगेँ अगर परोस।
सिर आएँगेँ आपके, दुनिया के हर दोष।
दुनिया के हर दोष, साथ चलते जायेँगे।
धनवानोँ का कोप, बढ़ेगा, थक जायेँगे।
देख आपके कष्ट, लोग पीटेँगेँ ताली।
हो जायेगी तेज, वही थोड़ी कंगाली॥
6-
कुण्डलियाँ होतीँ सुनेँ, कुण्डल के समरूप।
हैँ कविता मेँ शोभतीँ, ज्योँ जाड़े मेँ धूप।
ज्योँ जाड़े मेँ धूप, लगे दोहे का मोती।
रोला का ले ओज, बहुत गहरी हैँ होतीँ।
इतरातीँ हैँ देख, शब्द की सुन्दर कलियाँ।
फिर पहला वो शब्द, बनेँ ऐसे कुण्डलियाँ।।
7-
ऐसा युग है आ गया, दिखे नहीँ मुस्कान।
सब चिन्ता से ग्रस्त हैँ, रोना है आसान।
रोना है आसान, और जीना है मुश्किल।
रहता है बेचैन, हमेशा बेचारा दिल।
है सबकी यह चाह, मिले पैसा ही पैसा।
पैसा छीने चैन, वक्त आया है ऐसा।।
8-
किस्मत हमेँ किसान की, लगती मिट्टी धूल।
पर इसके उपकार को, कहीँ न जाना भूल।
कहीँ न जाना भूल, देश बढ़ता है आगे।
सोना भी दे छोड़, कृषक जब जी भर जागे।
खा कर इसका अन्न, कभी इस पर हँसना मत।
यही देश के प्राण, मगर ऐसी क्योँ किस्मत।।
9-
अपने ही खातिर करेँ, मदिरा से परहेज।
यह सबको पागल बना, करती दुख को तेज।
करती दुख को तेज, खेत घर सब बिक जाते।
जो पीते हर शाम, कहाँ वे हैँ बच पाते।
जल्दी आती मौत, जल्द ही टूटेँ सपनेँ।
जल्दी होते दूर, करीबी सारे अपने।।
10-
करते कर्म ग़रीब हैँ, सुबह-शाम, दिन-रात ।
फिर भी दुख हैँ भोगते, समझ न आती बात ।
समझ न आती बात, भला वे ही क्योँ रोते ।
जो करते हैँ काम, नहीँ जी भर के सोते ।
घर भी देते बेच, कर्ज ही भरते भरते ।
रहते हैँ बेहाल, काम जो करते करते ।।
11-
साक्षी सिंधू ने किया, बड़ा देश का नाम।
करता आज सलाम हूँ, देख निराला काम।
देख निराला काम, झूमते भारतवासी।
रखा हमारा मान, सभी देते शाबासी।
तुमने दिया प्रकाश, कि जैसे सूरज इंदू।
जियो हजारों साल, कि बहनों साक्षी सिंधू।।
– आकाश महेशपुरी