आकाश को अश्कों का पानी लगे
नयनों के सुने आकाश को अश्क़ों का पानी लगे
इश्क आग का एक दरिया बुजर्गो की बयानी लगे
ये मिल जाये मुझे तो मन्दिर मस्जिद सर झुकाऊं
गर ख़ुदा तेरी फिर मुझ पर थोड़ी सी मेहरबानी लगे
कोई इतना बता दे बारिश आग लगाती या बुझाती
जिस्म को जलाती बुँदे और मौजो की रवानी लगे
अपने यौवन को देख आईना में शरमा जाए दोस्तों
मालुम ना था उसे सौलाह बरस में मुझे जवानी लगे
हर वक्त जुबाँ पर उस हसीना का नाम ही है या रब
अपना ख़ुदा भी उसे बना बैठा क्यों तुझे हैरानी लगे
मेरे दिन का चैन लूटा तो रातो का करार भी गया
आँखो की जुबाँ करती चुगली ख्त्म् जिंदगानी लगे
अशोक अश्को के दामन क्यों तू बैठा इस सावन में
अब के बरसती इस आग में ख्त्म् तेरी कहानी लगे
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से