आकर राधे देख लो
आकर राधे देख लो तुम कलयुगी संसार
नारी का मान करे नही वो कैसे करेगा प्यार
तुम्हारे समर्पण पर कान्हा ने खोला ह्रदय द्दार
पर नहीं किसी को अब समर्पण की दरकार
इस कलयुग मे प्रेम का रूप बदलते देखो
स्वारथ के आगे निसदिन प्रेम रहा हार
कान्हा संग सदियो से तुम प्रेम मिसाल बनी बैठी हो
यहां टिकता नहीं प्रेम अब गुजरे दिन जब चार