आकर नहीं जाते हैं ये मेहमान कसम से।
मतला।
आकर नहीं जाते हैं ये मेहमान कसम से।
निकले बहुत बाकी हैं पर अरमान कसम से।
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जीना नहीं अब रह गया आसान कसम से।
इंसानियत से दूर है इंसान कसम से।
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जहरीली हवा हो रही मिट्टी भी गर्म है।
अब गुल नज़र आते सभी बेज़ान कसम से।
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ईनाम की लालच में सभी काम हो रहे।
लोगों में कम दिखने लगा ईमान कसम से।
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इंसानियत हैवानियत की हमसफर हुई।
अब खोजिए दूजी कोई पहचान कसम से।
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तुम देखो वहां पर हमारा खून दिखेगा।
हम छोड़ कर भागे नहीं मैदान कसम से।
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मक्ता।
तू मांग इस शिद्दत से “नजर” रूह बर्क हो।
दे दूंगा तेरे वास्ते यह जान कसम से।