आकर देखो गांव मेरा
मैं गांव का लड़का हूं और
तुम हो शहरों की परी प्रिये
मैं पगडंडियों पर चलता हूं
तुम सीधी सड़कों पर चली प्रिये।।
मैं तो हूं सीधा साधा, नहीं जानता
शहरों के रीति रिवाज़ प्रिये
आ जाऊंगा मिलने तुमसे जब भी
दोगे तुम आवाज़ प्रिये।।
जो दिखता है सामने मुझको
वो ही देख पाता हूं मैं तो प्रिये
जो भी कहती हो तुम मुझसे
सब सच मान जाता हूं मैं तो प्रिये।।
पसंद नहीं मुझको शोर शहरों का
मैं तो आता हूं यहां तुमसे मिलने प्रिये
जानना चाहता हूं अब मैं तुमसे
मेरे लिए क्या है तुम्हारे दिल में प्रिये।।
शहरों में तो भीड़ बहुत है
अपनापन नहीं दिखता प्रिये
गांव में भीड़ नहीं है लेकिन
अपनापन है बहुत मिलता प्रिये।।
डर लगता है शहरों से मुझको
यहां तो होते दिलों के सौदे प्रिये
आकर देखो गांव में हमारे कभी
कैसे उगते है प्यार के पौधे प्रिये।।
शहर की ज़िंदगी बहुत जी ली
करो अब तो गांव का रुख प्रिये
जो न मिला शहरों में कभी तुमको
गांव में मिलता है वो सुख प्रिये।।
जो हो जाओगे तुम मेरे अगर
मिलेगा तुमको पहाड़ों का सुकूं प्रिये
जो भी हो दिल में तुम्हारे, कह दो
गर हो राज़ी, तो तुम्हारे लिए मैं रुकूं प्रिये।।