आओ सोचें ! यदि करते हैं हम हिन्दी से प्यार।
सभी भारतवासियों को आज दिनांक 14सितम्बर 2017 को ” हिन्दी दिवस ” एवं दिनांक 14 सितम्बर 2017 से 28 सितंबर 2017 तक ” हिन्दी पखवाड़ा “की हार्दिक बधाईयाँ ।
यह हम देशवासियों का सौभाग्य है कि वर्तमान में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी हिन्दी के प्रबल समर्थक एवं हिन्दी-प्रेमी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जी के पश्चात् मोदी जी ने संपूर्ण विश्व में हिन्दी को सम्मानित करने में जो अद्वितीय भूमिका निभाई है वह सराहनीय है, जिसमें प्रत्येक भारतवासी के लिए एक प्रेरणादायी संदेश भी निहित है। आज मोदी जी के सद्प्रयत्नों से हमारी हिन्दी अन्तरराष्ट्रीय नक्शे पर चहुंओर अपना वर्चस्व फैलाती दृष्टिगोचर हो रही है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।
हमारी यह विडंबना रही है कि हम भारत वासी अपने ऊपर से अंग्रेजी के आधिपत्य को नकार कर अभी तक अपनी कोई एक भाषा निर्धारित नहीं कर सके हैं। विदेशी भाषा बुद्धिमत्ता का मापदंड नहीं है, केवल योग्यता बढ़ाने का साधन -मात्र है। भारत के अतिरिक्त विश्व का कोई राष्ट्र दूसरे देश की भाषा को अपनी राष्ट्र भाषा से उच्च स्थान नहीं देता। हमारे द्वारा विदेशी भाषा को अपनी भाषा से ऊंचा मानना संपूर्ण विश्व के सम्मुख एक उपहास जनक कृत्य के समान है। इसको समाप्त किया जाना आवश्यक है।
यदि हम हिन्दी भाषा को उसका खोया हुआ गौरव पुनः हासिल कराकर उसे राष्ट्र भाषा के सर्वोच्च सम्मान जनकपद की वास्तविक अधिकारिणी बनाने के पक्षधर हैं तो सरकार की ओर से निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक होगा – – – – – –
-प्रशासन यदि इस दिशा में कठोर प्रयास करे।
-संपूर्ण भारत में शिक्षा नीति में एकरूपता हो। शिक्षा का माध्यम यम अनिवार्य रूप से हिन्दी भाषा हो।
– प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों के अंग्रेज़ी भाषा में बातचीत पर रोक व जुर्माना हो।
-संपूर्ण भारत में शिक्षा का एक ही पाठ्यक्रम हो।
-सरकारी व गैर सरकारी संगठनों व कार्यालयों में कामकाज हिन्दी में हो।
मंत्रीगण केवल हिन्दी भाषा में ही शपथ लें।
-सभी प्रशासनिक व अन्य रोजगार संबंधी प्रतियोगी परीक्षाओं का माध्यम सिर्फ हिन्दी हो।
-देश में कार्यरत सभी विदेशी कंपनियों को कामकाज की भाषा हिन्दी रखना अनिवार्य हो।
-न्याय पालिका की ओर से दिए जाने वाले सभी फैसले हिन्दी में हों।
यह इसलिए अनिवार्य किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे देश की अधिकांश जनता हिन्दी माधयम द्वारा शिक्षित है।
प्रत्येक भारतीय के लिए हिन्दी का प्रश्न राष्ट्र की प्रतिष्ठा का प्रश्न होना चाहिए।
यदि भारत की आत्मा से साक्षात्कार करना है तो यह केवल हिन्दी के माध्यम से ही हो सकता है। आइए हम अपने देश के प्रधानमंत्री जी से प्रेरणा लेकर उनके पथ- प्रदर्शन में अपनी प्यारी हिन्दी की पहले अपने घर में और अंततः विश्व में एक सम्मान जनक अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में विजय-पताका फहराऐं।वह दिन दूर नहीं जब हमें अपने ही घर में अपनी ही भाषा की पहचान हेतु कोई विशेष “दिवस”, “सप्ताह” अथवा “पखवाड़े” आयोजित करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
अंत में मैं अपनी प्यारी हिन्दी की शान में कहना चाहूँगी–
मांँ का जो स्थान है घर में वह कहलाता है सर्वोच्च।
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा स्थान है उसका सबसे उच्च।।
—–रंजना माथुर दिनांक 14/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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