आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए
क्यों न आज घर को हम बृज धाम बनाए
आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए……
फ़िर बचपन की तरह कोई दोस्त घर आए
कुछ नहीं है कहकर मुट्ठी में रंग छुपाए
बाहर बुलाने के लिए सौ बहाने बनाए
हम नाटक करे और वो अपने पैंतरे आजमाए
लौट कर फ़िर वही गुजरे जमाने आ जाए
आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए……
भांग के नशे में फिर चूर होकर
गुझिया के स्वाद मे मदहोश होकर
खाने पीने तक कि सब सुर्त भुलाए
आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए……
साल भर उठापटक होती है रिश्तों में
सब एक दूसरे से लड़ते हैं झगड़ते है
पर गिले सब भुलाकर चलो हम एक हो जाए
आओ सब मिलकर आज फिर से होली मनाए…..
~ poetry By satendra