आओ मिलकर दीप जलायें
आओ मिलकर दीप जलायें
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जब तिमिर संसृति में अमा सा
विस्तीर्ण क्रन्दन निरुपाय सा
जल रहा विश्व अनल सा ,
संसृति हित नवीन उत्थान करायें
आओ मिलकर दीप जलायें ।
विश्व इस समय विषाद में
मनुज क्लांत उद्वेग हृदय में
उन्मुक्त वायु पर मनुज विकल में ,
प्रभा की धारा का इन्द्रजाल फैलायें
आओ मिलकर दीप जलायें ।
चन्द्रिका विछी व्योम तल में
उल्का अविरल उन्मुक्त गगन में
पर मनुज निरुपाय गेह में ,
संसृति की रक्षा खातिर ईशवर्म पहनायें
आओ मिलकर दीप जलायें ।
निरंकुश मानव विस्तीर्ण विज्ञान
दुर्जेय दुर्निवार शार्दूल समान
पर असहाय आज मौन अभिमान
छोंड़ उसके विगत विकार प्रकृति मन अपनायें
आओ मिलकर दीप जलायें ।
मानव यदि अब भी न सुधरेगा
तो प्रकृति का कोप भाजन बनेगा
विश्व अंगार शैय्या झेलेगा ,
“आनन्द” मधुर मारूत संग दीप झिलमिलायें
आओ मिलकर दीप जलायें ।।
आनन्द कुमार
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
५/४/२०२०