आओ मिलकर दीप जलाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं
अपने अंतर्मन में अलख जगाएं
बाहर की रौशनी तो बहुत हो चुकी
आत्मा को जाग्रत करने वाली लौ बनाएं
बाहर का दीपक एक प्रथा -दुनियादारी है
आंतरिक दीपक उस परब्रह्म तक जाने की तैयारी है
सकंल्प लेते हुए इस दीपक की अग्नि में पाँचों विकारों (काम -क्रोध -मद -लोभ और अहंकार )को जलाएं
अपने आपको उस दीपक के तेल में नहला कर आत्मा को पवित्र बनाएं
जलाएं एक ऐसा दीपक जिससे की हम अनगिनत भटके हुओं को राह दिखाएं
हर आरती में आने वाले तेरा तुझको अर्पण की परिभाषा समझाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं
नाम -विकास शर्मा ‘शिवाया’
उक्त रचना मेरी पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित रचना है !