आओ मिलकर आग लगायें..
आओ मिलकर आग लगायें,
कानून नया बनाये हम,
देश के फिर से टुकड़े करके,
हिन्दू मुस्लिम हो जायें हम,
अपनी मतलब के ख़ातिर हम,
संविधान बदल डाले,
आओ मिलकर आग लगायें…
कानून में संसोधन करके,
बाहरी को नागरिकता दें,
एन आर सी लागू करके,
देश की जनता भगायें हम,
इस सत्ता की भूख मिटाने,
कानून को कुचल डालें,
आओ मिलकर आग लागयें…
प्रजा त्रस्त हो महंगाई से,
सबको नजरअंदाज करें,
युवा भले बेरोजगार ही रहे,
उनकी समस्या खुद समझे,
हमें तो मतलब कुर्सी से है,
पहले अपनी भुख मिटा लें हम,
आओ मिलकर आग लगायें…
पहले बाँटा था जिन्ना ने,
हम भी उससे कम है क्या,
मरने वालों को मरने दो,
हमको क्या लेना देना,
जो करता है विरोध हमारी,
उसे देशद्रोही बताएं हम,
आओ मिलकर आग लगायें…
खरीद खरीद के मिडिया को,
खबर गलत फैलाएं जी,
विकास की बातें हो जहाँ भी,
जनता को मूर्ख बनाएं जी,
हिन्दू मुस्लिम की बातों में,
देश को अब उलझायें हम,
आओ मिलकर आग लागयें…
सत्ता हासिल करने के खातिर,
श्रीराम को कोर्ट बुलाया था,
देश का पैसा लूटने खातिर,
कर्जदारों को भगाया था,
भारतवर्ष की टुकड़े करने को,
अब कुछ भी कर जाएं हम,
आओ मिलकर आग लागयें…
– विनय कुमार करुणे
यह कविता वर्तमान भारत सरकार की स्थिति का आईना मात्र है,
अभी सरकार देश में जो स्थिति पैदा कर रहे हैं, उसी का व्यंग्य है,
इस कविता में वक्ता स्वंय भारत सरकार है, और श्रोता यहाँ की जनता है जो बार बार इनकी बातों में आकर मूर्ख बन जाती है।।