आओ बाहर, देखो बाहर
आओ बाहर, देखो बाहर,
फूल खिले है डाली डाली।
गुमसुम गुमसुम क्यों बैठे,
होकर इतने खाली खाली।।
उड़ रही है तितली प्यारी,
चल रही है मंद मंद पवन।
छोड़ो अपने मोबाइल को,
आओ बाहर घूमो हो मगन।।
सुनो पंछियों की कलरव,
और बादलों की गड़गड़ाहट।
क्यों बंद कमरे में घुट रहें,
देखो बाहर आओ झटपट।।
देखो नभ में रवि निकला,
हुई सुंदर सुहावनी भोर ।
लिए हुए लालिमा क्षितिज,
स्वर्ण लगता है हर छोर ।।
आओ बाहर , देखो बाहर,
प्रकृति की यह सुंदर बहार।
छोड़ो मोबाईल घूमो बाहर,
मन में खिलाओ प्रसून हजार।।