आओ फिर से हम बिछड़ते हैँ
आओ फिर से हम बिछड़ते हैँ
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आओ फिर से हम बिछड़ते हैँ,
उन्हीं राहों पर निकलते हैँ।
मिलती जब नजरें नशीली सी,
खुशबू मय जैसी छिड़कते हैँ।
रातें कटती ही नहीं हमसफऱ,
पुलकित हृषित हो बिखरते हैँ।
गहरा दरिया दरमियाँ आया,
मोती बन कर खुद निखरते हैँ।
आँसू मनसीरत पलक पर,
तन्हाँ – तन्हाँ चल बिलखते हैँ।.
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)