आओ, फिर एक दिया जलाएं
आओ ,फिर एक दीया जलाएं
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-अतुल मिश्र
आओ, फिर एक दीया जलाएं ,
मां के सम्मुख दीया जलाएं,
घोर तिमिर को दूर भगाएं,
निज पौरुष को करें न विस्मृत,
संघर्षों की अलख जगाएं,
आओ, फिर एक दीया जलाएं।
अंधकार ने है ललकारा ,
दांव लगा जीवन है यह सारा ,
कौन बचाए, कौन उबारे ,
धनुष टूट गए हैं सारे ,
वीर ,महारथी हुए लाचार,
क्षतिग्रस्त हो गए विचार,
विपदाओं ने कर दिया लाचार,
आओ ,फिर एक दीया जलाएं ,
मां के सम्मुख दीया जलाएं।
आत्मवान बन सबको जगाएं,
पूरे देश में अलख जगाएं ,
सर्वजन को यह समझाएं,
मां के सम्मुख दीया जलाएं।
दयामयी मां के सम्मुख हम सब अपना शीश झुकाएं,
जीवन के इस दुर्गम पथ पर करें साधना,अलख जगाएं ,
आओ, फिर एक दीया जलाएं, मां के सम्मुख दीया जलाएं।
ईर्ष्या, द्वेष, अवसाद, घृणा ,विषाद को,
मिलकर हम -सब दूर भगाएं,
राष्ट्रप्रेम को करें प्रज्ज्वलित ,
वन्दे मातरम का जय घोष लगाएं,
आओ, फिर एक दीया जलाएं,
मां के सम्मुख दीया जलाएं।।