आओ जलाएँ होली
जान लेती है निर्दोष लोगों की
जिनकी बंदूकों से निकली गोली,
हिंसा और आतंक फैलाकर,
खून की रोज जो खेलते होली,
आओ जलाएँ आज मिलकर
हम सब उस आतंक की होली।
आपसी फूट की दीवार बनाकर
नफ़रत, दहशत का ज़हर मिलाकर,
आँसू और सिसकियो से भरकर
कलंकित करते माँ की झोली,
आओ जलाएँ आज मिलकर
हम सब उस आतंक की होली।
मासूमों से छीनकर बचपन
सिखा रहे हथियारों की बोली
राष्ट्रीय एकता में सेंध लगाकर
कट्टरता की हैं फसलें बो लीं
आओ जलाएँ आज मिलकर
हम अब उस आतंक की होली।
कहीं पत्थराव ,कहीं बम प्रहार से
मिटा रहे जो लोगों की खुशहाली,
अलगाववाद की बीन बजाकर
समाज में जो ला रहे बदहाली,
आओ जलाएँ आज मिलकर
हम सब का आतंक की होली।
सजाएँ शहीदों के मस्तक पर रोली
दबाएँ आंतरिक विद्रोहों की बोली,
त्याग, प्रेम, उपकार और सदाचार से
भारत माता की हम भर दें झोली,
आओ जलाएँ आज मिलकर हम
दिलों में बढ़ती नफरतों की होली।
आओ मनाएँ आज मिलकर
प्यार के रंगों की होली ।
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खेमकिरण सैनी
7 मार्च, 2020