रसों में रस बनारस है !
बना रस है बना रस है, बनारस ही तो बना रस है।।
ठाट-बाट हर घाट-घाट में, घोटम-घोट छना रस है।
सटासट है फटाफट है, राजा रगों में बसा बनारस है।।
कहो उसको कौन बनायेगा, जो खुद से खुद बना रस है।।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
वरुणा असी नदियों के बीच है, अनुपम सा ये एक निवास।
प्रचलित है जग में की देखो, यहीं पर हैं महादेव का वास।।
गलियों से गलियों का निकास, विश्वनाथ में भीड़ ठसाठस है।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
सारनाथ, मार्कण्डे धाम, यहाँ संकट मोचन है विशाल।
जहाँ काल भैरव खुद बैठें हैं, बनकर के देखो कोतवाल।।
इनके मर्ज़ी के खिलाफ, बस जाये किसका साहस है।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
राम नगर का किला यहाँ है, वेधशाला जंतर मंतर।
तुलसी मानस, अन्नपूर्णा, और भारत माता का मंदर।।
बारहों ज्योर्तिलिंग यहाँ, यहीं चारोधाम का पारस है।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
जयशंकर, भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद जी का नगर खास।
तुलसी, कवीर, रविदास भगत, को आया था शहर रास।।
विस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई, इस नगरी का वारस है।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
खाने पीने में लौंगलत्ता, ठंडई और पान चकाचक है।
भौकाल बनारसी लहज़े का, बिन इनके मस्ती नाहक है।।
साइबेरिया से आते काशी, पर्यटन करने सारस है।
बना रस है बना रस है, गुरु रसों में रस बनारस है।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०३/०३/२०२०)