आओ कृष्ण गोपाला
जग में फैला फिर अंधियारा।
क्या है यह अमावस का अंधेरा
न जाने कब हो अब उजियारा।
आओ फिर एक बार गोपाला ।
आओ कृष्ण गोपाला रे—-2।
न तो अब आसमान दिख रहा
नहीं दिख रहा है अब जमीन ।
पग पग पर असुरों का आतंक
पल पल जीती मरती है बाला
आओ कृष्ण गोपाला रे—-2।
आओ आओ कृष्ण गोपाला
तुम बिन अब न कोई रखवाला।
आकर द्रोपती का लाज बचाओ।
फन काढ़े बैठे कालिया को भगाओ।
आओ कृष्ण गोपाला रे—-2।
घुट घुट कर जी रहे हैं प्राणी
हर जीव है आकुल व्याकुल
अटका है सभी का प्राण रे।
करो तुम सबका त्राण रे।
आओ अब कृष्ण गोपाला रे—-2।
शकुनि है चाल पर चाल चल रहा।
मानव- मानव एक दूजे जल रहा।
दुःशासन का दुःसाहस है बढ़ रहा।
दुविधा में फंसा हुआ है अर्जुन
दुष्टों का कैसे करें वह मर्दन।
उसको राह दिखा जा रे।
आओ कृष्ण गोपाला रे—-2।
तुम बिना सिवा न कोई रखवाला
जाए कहाँ अब ये सेवक तुम्हारा
कवि रवि की आस तुम्हीं हो
जन्म जन्म की पूंजी तुम्हीं हो ।
सुन ये अरदास हमारी
आओ कृष्ण गोपाला रे—-2।
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#रवि_शंकर_साह_बलसारा
बैद्यनाथ धाम, देवघर झारखंड
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