आओ और सराहा जाये
गीत…
आओ और सराहा जाये,
जिनके सपने बोल रहे हैं।
जो पथरीली उम्मीदों को,
श्रम से अपने रोल रहे हैं।।
उस बंधन से नाता तोड़ो,
जिनसे हैं सपने मर जाते।
टकराकर अन्तर्मन के हर,
राग सुकोमल हैं डर जाते।।
रह जाते झंझट में लिपटे,
जो संशय में डोल रहे हैं।
आओ और सराहा जाये,
जिनके सपने बोल रहे हैं।।
छू लेंगे होकर उत्साहित,
पर्वत की ऊंची चोटी को।
देंगे ये सम्मान हमेशा,
जीवन में अपने रोटी को।।
तन्मय हो कर्मों से नभ के,
जो पन्ने नित खोल रहे हैं।
आओ और सराहा जाये,
जिनके सपने बोल रहे हैं।।
जिनके मन में दुर्भावों के,
पुष्प नहीं हैं खिलने पाते।
संघर्षों में दृढ़ता के बल,
ध्येय पंथ लड़ते मुस्काते।।
रहना उनसे दूर हृदय में,
जो विष बैरी घोल रहे हैं।
आओ और सराहा जाये,
जिनके सपने बोल रहे हैं।।
आओ और सराहा जाये,
जिनके सपने बोल रहे हैं।
जो पथरीली उम्मीदों को,
श्रम से अपने रोल रहे हैं।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)