आओ उठें स्वयं से ऊपर
आओ उठें स्वयं से ऊपर
लें न कभी निर्बल से टक्कर
मस्ती में जीवन जीने को
पिएं काव्य की हाला छककर
खेलें विघ्नों बाधाओं से
झेलें चुनौतियों को डटकर
शिखर सुयश के छूने को हम
यावज्जीवन चलें निरन्तर
पीना पड़े जहर भी यदि तो
पिएं हमेशा उसको हॅंसकर
हों भयभीत न कभी किसी से
जिएं न कभी मौत से डरकर
नाम अमर कर सकते हैं सब
अनुयायी महेश के बनकर ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी