“आओ अधरामृत पान करें ।”
मैं छल प्रपंच न जानूँ प्रिये,
उर प्रीत को ही मानूँ प्रिये,
प्रणय अधर पर है लहराई
मिलकर इसका सम्मान करें,
आओ अधरामृत पान करें ।
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चक्षु ह्रदय का तुम खोलो,
नैनों से अब कुछ बोलो,
दृग ने है प्रेम सुधा बरसाई,
प्रणय निवेदन का मान करें,
आओ अधरामृत पान करें।
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इस मन पर तेरा ही राज है,
इन सांसों में तेरा ही साज है,
ॠतु मधुमास चहुंओर है छाई,
राग प्रेम का हम भी गान करें,
आओ अधरामृत पान करें ।
@पूनम झा। कोटा, राजस्थान।
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