आओ अजनबी बध जाएं.हम तुम
आओ अजनबी बन जाए हम – तुम
फिर से एक दूसरे को जाने हम तुम
जिंदगी तारीकियों में है अशान्त सी
फिर से मुन्तजिर बन जाएं हम तुम
भटकें दिशा-दशा बदली बदली सी
रहबर बनके दशा सुधारेंगे हम तुम
आएं हैं जिन्दगी में, तुफान बहुत से
फिर से सहारा बन जाते हैं हम तुम
अंबर में छाये बादल नहीं बरसते हैं
पहली बारिश बनकर बरसे हम तुम
हसरत ए जिंदगी,रह गई थी अधूरी
हाथों में लिए हाथ पूरी करें हम तुम
एहसास ए जिम्मेदारी में खो से गए
स्वतंत्र परिंदों सी उड़ान भरें हम तुम
अंजुमन में भी लगे अकेले अकेले से
महफिल में साथ साथ झूमें हम तुम
आओ अजनबी बन जाएं हम -तुम
फिर से एक दूसरे को जाने हम तुम
सुखविंद्र सिंह मनसीरत