आए क्यों ना माधव २
फितरत होती इन्सानों की,
मढ़ते अपने गलतियों के दोष ईश्वर पे,
खड़ा था मैं गलियारों में,
भैया युधिष्ठिर के वचन से बंधे,
वचन लिया था उन्होंने मुझसे,
केशव, कदम ना बढ़ाना तुम
जब तक पुकारे ना तुम्हें कोई,
तब तक अपनी माया ना फैलाना,
हार गए सर्वस्व अपना,
पर हमको ना बुलाया था,
शायद इसलिए भैया युधिष्ठिर सबसे प्यारा मुझे,
पर सत्यवादी इतना भी अच्छा नहीं,
माना जुआ खेलना पाप है,
पर ललकार का उत्तर ना देना,
सोभा देता क्या महाराजा को?
दुष्ट दुर्योधन बड़ा चालाक निकला,
रहता मैं तो कैसे खेलता वह दांव?
इसलिए फंसा दिया मुझे महाराज के वचनों में,
क्षमा करना मुझे द्रोपदी ,
ना दोष तेरा मुरलीधर,
बोल गई अज्ञान में , मैं बातें कुछ रोष भरी,
सामर्थ कहा मुझमें तुम पे उंगली उठाने का,
बस किया जिज्ञासा शांत अपना,
तुम्हें अपना समझ के ।