आउट ऑफ..!
बड़े लंबे समय बाद मोबाइल पर एक नए नंबर से कॉल आया। ‘True caller’ की वजह से सिर्फ एरिया का नाम दिख रहा था। जैसे कॉल रिसाइव हुआ, घबराई हुई आवाज़ में उसने पूछा ‘वहां सब खैरियत है?आप ठीक हो?’ जवाब देने से पहले ही उसने कहा ‘ये लैंडलाइन है, इसी नंबर पर कॉल बैक करो’ कॉल बैक करने के बाद उसने फिर से वही सवाल किया।
‘यहां सब ठीक है, आप अपनी बताओ और वहां के हालात कैसे हैं अभी?’
‘अभी धीरे-धीरे सही हो रहे हैं, पीछले एक महीने से घर में बंद हैं, अभी भी सब कुछ बंद है, मोबाइल नेटवर्क, इंटरनेट… सिर्फ लैंडलाइन चालू है’
‘वहां के लोग कैसे हैं?’
‘बेचारे परेशान रहते हैं, उदास चेहरे, दुखी आवाज़ में कहते हैं-‘घर पर बात नहीं होती, फिक्र होती है हर पल’।
हां यार… (उदासी भरे टोन में)
‘खैर, पढ़ाई-लिखाई कैसे चल रही है?’
‘कुछ नहीं…कर्फ्यू लगने की वजह से घर पहुंचना ज़रूरी था, जल्दबाजी में सारी किताबें वहीं रह गईं’।
‘कोई बात नहीं… हालात तो हैं, सही हो जाएंगे धीरे-धीरे…’
‘हां… कुछ दिनों के लिए हम अपने शहर से बाहर आना चाहते हैं…’
‘क्यों?’
क्यों का कोई जवाब नहीं आया। शायद लैंडलाइन भी आउट ऑफ नेटवर्क हो चुका था…
©सिराज राज