आई है ऋतु प्रेम की.(नव बसंत)
सरस्वती से हो गया ,तब से रिश्ता खास !
बुरे वक्त में जब घिरा,लक्ष्मी रही न पास !!
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जिसको देखो कर रहा, हरियाली काअंत !
आँखें अपनी मूँद कर, रोये आज बसंत !!
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पुरवाई सँग झूमती,.. शाखें कर शृंगार !
लेती है अँगडाइयाँ ,ज्यों अलबेली नार !!
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आई है ऋतु प्रेम की,.. आया है ऋतुराज !
बन बैठी है नायिका ,सजधज कुदरत आज !!
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सर्दी-गर्मी मिल गए , बदल गया परिवेश !
शीतल मंद सुगंध से, महके सभी “रमेश” !!
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हुआ नहाना ओस में ,…तेरा जब जब रात !
कोहरे में लिपटी मिली,तब तब सर्द प्रभात !!
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कन्याओं का भ्रूण में,…. कर देते हैं अंत !
उस घर में आता नही, जल्दी कभी बसंत !!
रमेश शर्मा