आई बैशाखी की रेल
झिलमिल करती कनक बालियाँ
दिनकर की तपिश किरणों से,
शबनमीं समीर में सरपट दौड़ी
आई बैशाखी की रेल ।
हलधर खेतों को कूच कर रहे
लेकर दतिया और बैलों की जोट,
फसल कटाई का करने आगाज
आई बैशाखी की रेल ।
कलेवा ले आई मुटियारें
खड़ी मेड़ पर देती टेर,
खेतिहर की शिथिलता मिटाने
आई बैशाखी की रेल ।
कहीं भंगड़े की धूम मची
कहीं गिद्दे का चढ़ा खूमार,
सबको अपना मीत बनाने
आई बैशाखी की रेल ।
घर-घर बन रहे पकवान
झूम रहा सारा आलम,
सद्भाव और भ्रातृभाव का ले संदेश
आई बैशाखी की रेल ।
-विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’