*आई गंगा स्वर्ग से, उतर हिमालय धाम (कुंडलिया)*
आई गंगा स्वर्ग से, उतर हिमालय धाम (कुंडलिया)
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आई गंगा स्वर्ग से ,उतर हिमालय धाम
लिया जटाओं में इसे ,शंकर जी ने थाम
शंकर जी ने थाम ,चली भागीरथ धारा
पावन इसकी बूँद ,छू गया जो वह तारा
कहते रवि कविराय ,अलकनंदा वरदाई
वंदन भारतवर्ष ,जहाँ सुरसरिता आई
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
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गंगा जल किसी नदी का कोई साधारण जल नहीं है । इसे राजा भागीरथ बड़ी तपस्या के बाद स्वर्ग से धरती पर लाए थे। किंतु गंगा का वेग धरती सहन नहीं कर सकती थी । भगवान शंकर की तपस्या करके भागीरथ ने उन्हें इस बात के लिए तैयार किया कि वह अपनी अलकों अर्थात जटाओं में गंगा को थाम लें। शिव जी ने ऐसा ही किया । इस तरह गंगा का एक नाम #अलकनंदा पड़ गया । एक जटा में गंगा की धारा शिव जी ने खोल दी और वह पहाड़ों से होती हुई हरिद्वार से निकलकर मैदानों में आ गई ।
गंगा कोई साधारण नदी नहीं है । यह स्वर्ग से आई है। अतः इसे सुरसरिता कहते हैं । (लेखक : रवि प्रकाश )