” आई – अम्माँ , मॉम – मम्मा “
दुनियाँ की सभी माओं को समर्पित ???
अम्माँ अम्माँ करते आधा युग बीत गया
मम्मा मम्मा सुनते एक चौथाई
बच्चों की हर आवाज़ पर माँ बोली
मैं आई मैं आई…मैं आई मैं आई ,
अम्माँ की नींद मैं सोई
मेरी नींद मेरे बच्चे
युगों युगों से ये परंपरा
निभाई सबने हँसते हँसते ,
माँ शब्द में ऐसा जादू है
नही किसी का क़ाबू है ,
आई – अम्माँ , मॉम – मम्मा
इससे फ़र्क़ क्या पड़ता है
हर बच्चे का अपनी माँ से
नाभि से कट कर जुड़ता दिल से रिश्ता है ,
इस शुद्ध पावन रिश्ते में
मिलावट की गुंजाईश नही
ऐसा कौन सा बच्चा है
जो अपनी माँ की पैदाईश नही ,
हर माँ भगवान बन कर
जन्म देती नन्हें भगवान को
वक़त इसकी समझना होगा
एक – एक हर इंसान को ,
माँ हूँ माँ को जानती हूँ
उसकी सब रग पहचानती हूँ
माँ के हर इक त्याग के पीछे का
ममत्व – महत्व समझती हूँ ,
इस रिश्ते की क़ीमत
कोई कैसे चुका सकता है
इंसान होकर क्या कोई
भगवान का मोल लगा सकता है ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/05/2020 )