आईने पर लिखे अशआर
*खुद को भी एक नज़र देखो।
तुम जब भी आईना देखो ।।
*कुछ भी बदला नहीं हममें ।
आईना तोड़ कर भी देखा है ।।
*खुद को पहचानना अगर हो मुश्किल ।
आपना किरदार आईना कर लो ।।
*अपनी फ़ितरत पे है नज़र अपनी ।
आईना हम भी देख लेते हैं ।।
*अपनी पहचान भी वो आप हुआ करते हैं ।
आईने की तरह जिनके किरदार हुआ करते हैं ।।
*आईना हमको वो दिखा बैठा ।
कुछ तो उसमें कमी रही होगी ।।
*मुस्कुराओ तो मुस्कुराती है ।
ज़िंदगी आईने के जैसी है ।।
*आईने कितने देख कर आये ।
अक़्स अपना नज़र नहीं आया ।।
*मुश्किल बहुत है सामने
दर्द के आईने रखना ।
अंदर से टूट कर भी
खुद के मायने रखना ।।
*उंगलियां दूसरों पे न उठती ।
आईना हाथ में अगर रखते ।।
*देखते हैं इसमें बस खुद को ।
आईना हम कहां दिखाते हैं ।।
*देखनी हो अगर पसंद मेरी ।
रूबरू अपने आईना रखना।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद