आईने की सदा …
ऐ खुदा ! आज में तेरी अदालत में हाज़िर हूँ
कहता हूँ तुझसे हाँ ! मैं तेरा कुसूरवार हूँ ,
तुम्हें मुझसे ज़रूर होंगी शिकायतें बेशुमार ,
मगर इंसान की पहुँच से मैं बहुत दूर हूँ.
तुमने मुझे भेजा आबरू–ऐ-हकीक़त वास्ते ,
वो तो न कर सका ,मगर फिर भी जिंदा हूँ.
खड़ा रहता हूँ कमरे में सामान की मानिंद ,
देखते तो हैं लोग,क्योंकि मैं उनकी आदत हूँ .
मैं तो बेजुबान हूँ इनकेलिए मगर ऐ खुदा !
बुझी हुई औ अश्केनम आँखों का तसव्वुर हूँ,
मेरे चेहरे को देख ,मेरे रूप को संवार ऐ आईने !
दिल ना दिखाना कभी क्योंकि मैं बहुत मगरूर हूँ .
तोड़ दूंगा तुझे टुकड़े कर दूंगा तेरे एक पल में,
जबसे कहा उसने,शर्म से खुद ही हो गया चूर मैं .
दम घुटा जाता है मेरा इस बाज़ार-ऐ-दुनिया में ,
रंग बदलती गिरगिटों के बीच दारा हुआ सा में हूँ.