आईना
क्यों रूठूँ मैं आइने से भला,
हर कदम जो मेरे साथ चला
सँवारा हर पल लम्हा जिसने
वो इश्क मेरा पहला पहला
मुस्कुराया था जब हुई खुश मैं
गम में उसने भी गम उगला
ख्वाब मेरी आँखों में थे जगे
अक्स उनका आइने में पला
झूठे हैं सनम,बेवफा निकले
आइना ही तो सच्चा निकला
✍हेमा तिवारी भट्ट✍