आईना बोल उठा
“आईना बोल उठा”
मैं आई जब आईने के सामने तो आईना बोल उठा,
ये भेद मेरा खोल उठा,
के आईना बोल उठा।
खुशियों की थी परछाई,
जिंदगी में हलके से आई।
नजर ना लग जाये दुनिया की,
यही सोच खुद तक बसाई।।
मैं आयी जब आईने के सामने,
आंखों में थी मस्ती छाई,
चेहरे पर थी लाली आयी,
भेद मेरा खोल उठा, के आईना बोल उठा।।
बुरे वक्त का था फिर साया,
गम पर गम लहराता आया,
ताने न कसदे ये दुनिया,
ये सोच दिल मे था छिपाया।
पर आई जब आईने के सामने,
आंखों में दर्द था छाया,
गुस्से से चेहरा तमतमाया,
ये देख खून मेरा खोल उठा, के आईना बोल उठा।
भेद मेरा खोल उठा, के आईना बोल उठा।।
“सुषमा मलिक”