“आईंना “
“रब की इनायत हुई हम ऐसा आइना बना दिए,
लोग चेहरा दिखाते थे हम नीयत दिखा दिए,
शर्मसार होकर खड़े बुत से रहे,
चेहरा देख आईंने में जिनको गुरूर था,
हकीकत में अपना उन्हें किरदार समझ आया,
जिस वक़्त हमने ये आईंना दिखाया,
अपनी फ़ितरत से डर गये,
जो आईंने को पत्थर से डराते थे,
रो पड़े खुद पर ही आज,
जो औरों की खिल्लियाँ उड़ाते थे,
नक़ाब चेहरे से हटते ही नज़रें चुराने लगे,
सब्र सिखाते थे हमे वो खुद ही घबराने लगे,
देख आईंने में टूटे वहम,
ज़ख्म की चोट से चटक गये,
हिदायतें देना भूल गये,
जो कहते थे हम भटक गये,
मेरे ऐबो को तलाशना ही बंद कर दिया,
जब से तौफ़े में हमने ये आईंना दिया “