Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jun 2017 · 5 min read

आइये पर्यावरण के लिए इस बार कुछ नया करें

लीजिये हर साल की तरह एक और पर्यावरण दिवस चला गया…… हर साल की तरह इस साल भी हर जगह बस २४ घंटों के लिए पर्यावरण और उसकी सुरक्षा की बात की गई …… रात बीतने के साथ ही पर्यावरण दिवस भी बीत गया और लोगों को दूसरी सुबह याद भी नहीं रहा कि कल क्या था……… कहीं भाषण कहे गए ……… कही कवितायें कही गई ……… कहीं चित्र उकेरे गए ……… कहीं पौधे लगाते हुए फोटो खिंचवाई गई ……… कहीं कहीं साइकल रैली और पता नहीं क्या-क्या किया गया… पर असल में देखा जाये तो कुछ भी नहीं किया गया …… क्या सिर्फ बातें करने से ही हमारा पर्यावरण सुधर जायेगा?…… क्या साल के ८७६० घंटों में से सिर्फ २४ घंटे हमारा अपने पर्यावरण के बारे में सोचना काफी है?…… क्या हम वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर हैं?……… यदि हाँ तो साल में एक दिन इस बारे में सोचकर हम साल भर क्यों चुप बैठ जाते हैं?……… अपने वातावरण को सही और सुंदर रखना हमारा कर्त्तव्य है…… तो चलिए इस बार कुछ अलग करते है ताकि आयोजन पूरे वर्ष भर चलते रहे और हमारे लिए प्रत्येक दिन पर्यावरण दिवस हो………

हमारा पर्यावरण मिट्टी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से मिलकर बना है…… पर इस पर्यावरण के सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं हम, स्वयं इंसान…… आज विकास का काला चश्मा पहनकर यहीं इंसान इस पर्यावरण में जहर घोल रहा है…… कुल्हाडियों से अंधाधुंध जंगलों के जंगल काटे जा रहे हैं… वन्य जीवों का, सिर्फ कुछ पैसों के लालच में, शिकार कर रहा है ये इंसान…… बड़े बड़े उद्योगों की ऊंची चिमनियों, मोटर गाड़ियों से निकलते धुएं शहरों के वातावरण में दिन-प्रतिदिन जहर घोल रहे हैं……… और तो और इन बड़े बड़े उद्योगों से निकल रहे गंदे-जहरीले पानी से हमारी सुंदर-स्वच्छ नदियों और हरी-नीली झीलों को काला-पीला बना दिया जा रहा है……… और बाद में इन्हीं नदियों को स्वच्छ करने अरबों रुपये पानी में बहाए जा रहे है…… ये तो वही बात हुई कि अगर काम नहीं है तो अच्छे-खासे पायजामे को फाड़िये और फिर सिलने बैठ जाइये…

कब होता है पर्यावरण असंतुलित?

हमारे आस पास के प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है, जो स्वयं में पूर्ण है और प्रकृति के सारे कार्य एक सुनिश्चित व्यवस्था के अतंर्गत होते रहते हैं…… यदि मनुष्य प्रकृति के नियमों का पालन करता है तो उसे पृथ्वी पर जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यकताओं में कोई कमी नहीं रहती है……… पर आज मनुष्य आधुनिकता की चकाचौंध में अंधा होकर अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए प्रकृति का अति दोहन करता जा रहा है, जिसके कारण प्रकृति का संतुलन डगमगाने लगा है…… परिणामतः बाढ़, सूखा, प्रदूषण, महामारी, दिनों दिन बढती गर्मी, जल की कमी जैसी समस्यायें पैदा होने लगी हैं…………

पर्यावरण असंतुलन के दुष्परिणाम

पर्यावरण असंतुलन के कारण मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है……… बहुत से जीव-जंतु हमें बिल्कुल अनुपयोगी और हानिकारक प्रतीत होते हैं, लेकिन वे खाद्य श्रृंखला की प्रमुख कड़ी होते हैं और उनका पर्यावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान होता है…………पर्यावरण में आये इस असंतुलन के कारण इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष नस्ल की तितलियाँ, वन्य जीव, पौधे गायब हो चुके हैं……

प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़ पौधे एवं फसलों पर भी पड़ा है……… कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है…… साथ ही समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है।

प्रकृति के नियमों का पालन ना किये जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है…… जमीन के अन्दर पानी के स्त्रोत कम हो गए हैं और लोगों को पर्याप्त पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है………

सिमटते जंगल और शिकारियों पर कोई अंकुश नहीं होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ के साथ-साथ अन्य कई जानवरों की संख्या लगातार कम होती जा रही है, जो चिंता का सबब है…… सन् 2002 के सर्वेक्षण में बाघों की संख्या 3500 आंकी गई थी लेकिन ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार भारत में केवल 2226 बाघ बचे हैं……… यानि की लगभग आधे ……

समुद्र तटों पर स्थित महानगरों को पर्यावरण असंतुलन के कारण अब भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है…… समुद्र के पानी का स्तर सामान्य से ज्यादा होने के कारण भयंकर तूफान से इन महानगरों के डूब जाने का खतरा बढ़ता जा रहा है………

आज दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिग का संकट और भी गहराता जा रहा है……

कैसे करें पर्यावरण कि रक्षा

पर्यावरण के नुक़सान से जो क्षति हो रही है वह हाल के दशक के मानव समाज की कई उपलब्धियों को बौना बना रही है……… अपने पर्यावरण की सुरक्षा करना आज की सबसे बड़ी जरुरत है…… लेकिन पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में जब तक हरेक इंसान इसमें अपना योगदान नहीं करेगा, ये मुहिम सफल नहीं हो सकती……… हम भी कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने आस-पास के पर्यावरण को साफ-सुथरा और प्रदूषण रहित रखने में योगदान कर सकते हैं………

*पानी व्यर्थ ना बहायें
*कचरे को ठीक जगह पर फेंके
*बिजली को व्यर्थ खर्च ना करें
*जंगलों को न काटे
*कार्बन जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे।
*उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें।
*ज़मीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए वर्षा के पानी को सहेजने की व्यवस्था करें
*ध्वनि प्रदूषण को सीमित करें
*वृक्षारोपण करें

आप सोच रहें होंगे क्या इन छोटी-छोटी बातों से हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा…… जी हाँ ये छोटी छोटी बातें ही हैं जिन्हें ध्यान में रख कर हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते है… पर्यावरण सिर्फ चर्चा करने का विषय नहीं है, बल्कि जरुरत है कि हम इसे अपने आसपास महसूस करें और इसकी सुरक्षा का प्रण लें, सिर्फ २४ घंटे के लिए नहीं बल्कि हर चौबीसों घंटे के लिए……… यही समय है जब हम सब को एकत्रित होकर हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने तथा उनका विकास करने की कोशिश करनी चाहिए…… नहीं तो पृथ्वी पर भी अन्य ग्रहों की तरह जीवन नामुमकिन हो जाएगा……

आओ कुछ नया करें

पर्यावरण संतुलन के लिए जरुरी है कि हम वृक्षारोपण एवं वन्य जीव संरक्षण का महत्व समझे……… वृक्ष खाद्य श्रृंखला की प्रथम कड़ी हैं, अतः पर्यावरण के संरक्षण में वृक्षों का सबसे अधिक महत्व है और इनकी सुरक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है…… क्यों ना हम अपने जन्म दिन पर, बच्चों के जन्मदिन पर, विवाह दिवस पर तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर स्मृति के रूप में वृक्ष लगाये……… सिर्फ वृक्ष लगाये नहीं अपितु उनकी देखभाल भी करें…… पर्यावरण संतुलन के लिए आज इस स्वस्थ परंपरा को आरंभ करने की महती आवश्यकता है…… समाज को इस दिशा में सकारात्मक पहल कर इस प्रथा को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए……

लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 636 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नियोजित शिक्षक का भविष्य
नियोजित शिक्षक का भविष्य
साहिल
"झूठ और सच" हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्रीतम श्रावस्तवी
" तार हूं मैं "
Dr Meenu Poonia
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
Arvind trivedi
दर्पण
दर्पण
लक्ष्मी सिंह
शासन की ट्रेन पलटी
शासन की ट्रेन पलटी
*Author प्रणय प्रभात*
डॉ. जसवंतसिंह जनमेजय का प्रतिक्रिया पत्र लेखन कार्य अभूतपूर्व है
डॉ. जसवंतसिंह जनमेजय का प्रतिक्रिया पत्र लेखन कार्य अभूतपूर्व है
आर एस आघात
भले ई फूल बा करिया
भले ई फूल बा करिया
आकाश महेशपुरी
"मुद्रा"
Dr. Kishan tandon kranti
कविता
कविता
Shiva Awasthi
*वेद उपनिषद रामायण,गीता में काव्य समाया है (हिंदी गजल/ गीतिक
*वेद उपनिषद रामायण,गीता में काव्य समाया है (हिंदी गजल/ गीतिक
Ravi Prakash
रिश्ते बनाना आसान है
रिश्ते बनाना आसान है
shabina. Naaz
23)”बसंत पंचमी दिवस”
23)”बसंत पंचमी दिवस”
Sapna Arora
जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी
जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी
ruby kumari
लत / MUSAFIR BAITHA
लत / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
ख़त्म होने जैसा
ख़त्म होने जैसा
Sangeeta Beniwal
शाम
शाम
N manglam
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
Kumar lalit
तिरंगे के तीन रंग , हैं हमारी शान
तिरंगे के तीन रंग , हैं हमारी शान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अपनी हसरत अपने दिल में दबा कर रखो
अपनी हसरत अपने दिल में दबा कर रखो
पूर्वार्थ
मौहब्बत की नदियां बहा कर रहेंगे ।
मौहब्बत की नदियां बहा कर रहेंगे ।
Phool gufran
तीर'गी  तू  बता  रौशनी  कौन है ।
तीर'गी तू बता रौशनी कौन है ।
Neelam Sharma
फायदे का सौदा
फायदे का सौदा
ओनिका सेतिया 'अनु '
ग़रीबी भरे बाजार मे पुरुष को नंगा कर देती है
ग़रीबी भरे बाजार मे पुरुष को नंगा कर देती है
शेखर सिंह
आदिपुरुष समीक्षा
आदिपुरुष समीक्षा
Dr.Archannaa Mishraa
*आशाओं के दीप*
*आशाओं के दीप*
Harminder Kaur
💐प्रेम कौतुक-275💐
💐प्रेम कौतुक-275💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*जीवन खड़ी चढ़ाई सीढ़ी है सीढ़ियों में जाने का रास्ता है लेक
*जीवन खड़ी चढ़ाई सीढ़ी है सीढ़ियों में जाने का रास्ता है लेक
Shashi kala vyas
जरूरत के हिसाब से ही
जरूरत के हिसाब से ही
Dr Manju Saini
Loading...