आइना सच का दिखाता है मुझे
वो बिना कारण रुलाता है मुझे।
बाद में खुद ही मनाता है मुझे।।
प्यार का इजहार जब से है किया।
वो इशारे से बुलाता है मुझे।।
बात दिल की वो न कहता है कभी।
दोस्त अपना जो बताता है मुझे।।
नाम उसका मैं अदब से लू सदा।
जो समझ अपना बुलाता है मुझे।।
चार बेटे है नही फिर भी सुखी।
दुःख अपना वो सुनाता है मुझे।।
शाइरी बारे न कुछ भी जानता।
शेर होता क्या सिखाता है मुझे।।
बात कहता मैं नज़ाकत से सदा।
तल्ख़ लहजा तो न आता है मुझे।।
राह कोई जब नजर आती नही।
वो मुसीबत में बुलाता है मुझे।।
मानता हूँ सच सुरेंदर कह रहा।
आइना सच का दिखाता है मुझे।।
सुरेंदर इंसान
सिरसा,हरियाणा