आंदोलन पर प्रश्न नाहक!
आंदोलन से कोई यों ही नहीं जुड़ जाता,
जब तक जिसके अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा नहीं हो जाता,
वह आंदोलन की राह नहीं अपनाता!
जब हो जाएं प्रतिकूल परिस्थिति,
तब तब बनती है आंदोलन की स्थिति,
जब मन में यह भाव जागे,
तब उसके विरुद्ध खड़ा हो आगे,
करने लगता है विरोध,
व्यवस्था के प्रतिकूल अवरोध,
यही भाव बोध,
आंदोलन का है शोध!
जो स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल देते,
यथा स्थिति को अपना लेते,
चाहे हो वह कितनी भी प्रतिकूल,
नहीं कर पाते उसका प्रतिकार,
सहजता से कर लेते हैं स्वीकार,
बिना लडे ही मान जाते हैं हार,
वह शोषण को ढोने के आदि हो चुके हैं,
अपने विवेक वह खो चुके हैं,
हो गये हैं जो निस्तेज!
छोड़कर जीत हार का किस्सा,
बनकर शोषण का हिस्सा,
करते हैं वही व्यवहार,
आहत मन की करते, उपेक्षा,
लाभ हानि,मान अपमान,
छोड़ चुके हैं जो आत्मसम्मान,
सब कुछ भूलकर कर चुके समर्पण,
कर देते हैं वो पलायन,
कर नहीं पाते हैं वो आंदोलन।
बनकर चारण,
करते जो स्तुति गायन,
होता रहता है उनका ही शोषण!
जो शोषण के विरुद्ध खड़े हो जाते,
जो कुव्यवस्था से हैं टकराते,
अपनी व्यथा को छोड़,
व्यवस्था के लिए लड़ जाते,
वही बन पाते हैं आंदोलन के वाहक,
चाहे उनकेे विरुद्ध खड़े हों शासक,
उन्हीं के आगे झुकता है मस्तक,
उन पर प्रश्न ना खड़ा करो तुम नाहक।
”
कोई तो वजह होती है, यूं ही कोई आंदोलन नहीं किया करते!”