आंतरिक मूल्यांकन
आंतरिक मूल्यांकन
-विनोद सिल्ला
विद्यालय की छात्रा पूजा ने बोर्ड की 10+2 की वार्षिक परीक्षा में संस्कृत विषय में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करके राज्य भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। जिसे राज्य के मुख्यमन्त्री ने अपने हाथों सम्मानित किया। मीडिया व सोशल मीडिया पर यह समाचार खूब वायरल हुआ कि सभी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण क्षेत्र की छात्रा ने किया कमाल। जिला शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी, प्राचार्य व विद्यालय के अध्यापक/अध्यापिकाएं फूले नहीं समाए।
यह उद्घोषणा करते हुए अध्यापिका इन्द्रकला का गला भर आया। भरे गले से ही उसने बताया कि पूजा की इस सफलता का श्रेय अंग्रेजी अध्यापक कर्मवीर को भी जाता है।
उनकी बातें छात्र-छात्राओं व सहकर्मियों की समझ से बाहर थी। हों भी क्यों नहीं? अध्यापक कर्मवीर का संस्कृत विषय से कोई लेना-देना ही नहीं, फिर भी उनको श्रेय वाकई समझ से परे था।
सभी सहकर्मियों ने छात्रा की इस उपलब्धि पर संस्कृत विषय की अध्यापिका इन्द्रकला से बम्पर पार्टी की मांग की। जिसे अध्यापिका ने सहर्ष स्वीकार किया। एक दिन विद्यालय में भव्य आयोजन हुआ।
सभी ने जलपान का खूब लुत्फ उठाया। सभी सहकर्मियों ने संस्कृत विषय की अध्यापिका को दिल खोलकर बधाई दी और जलपान के लिए उनका धन्यवाद भी किया।
हिंदी अध्यापक पवन से रहा नहीं गया। बधाई व धन्यवाद के उपरांत मंच के माध्यम से ही पूछ लिया कि छात्रा पूजा की इस उपलब्धि का श्रेय छात्रा और उसकी अध्यापिका को जाता है। छात्रा द्वारा संस्कृत विषय में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करने का श्रेय अंग्रेजी अध्यापक कर्मवीर को कैसे जाता है? इस बारे में थोड़ा विस्तार से बताने का कष्ट करें।
अध्यापिका इन्द्रकला ने बताया, “इन छात्र-छात्राओं के कक्षा के प्रभारी अंग्रेजी अध्यापक कर्मवीर ही हैं। जब आंतरिक मूल्यांकन की अवार्ड लिस्ट तैयार हो रही थी। तो कर्मवीर ने मुझसे कहा था कि जो छात्र-छात्रा कुशाग्र-बुद्धि हैं। जिन से विद्यालय को कुछ संभावना है। उनके आंतरिक मूल्यांकन के अंक 20 में से 20 लगा दो। मैं पूरे अंक देने में संकोच कर रही थी। मैं 20 में से 20 अंक देने को तैयार नहीं थी। इन्होंने मेरे हाथ से अवार्ड लिस्ट छीनकर इन बच्चों के आंतरिक मूल्यांकन के शत-प्रतिशत अंक दे दिए। मैं इनसे इस विषय में लड़ती-झगड़ती रही। इनको बुरा-भला कहती रही अगर ये ऐसा नहीं करते तो छात्रा यह कीर्तिमान स्थापित करने से वंचित रह जाती। मैं इन छात्र-छात्राओं को 19 से अधिक अंक देना नहीं चाहती थी। मेरी प्रथम नियुक्ति से लेकर इस विद्यालय में तबादला होकर आने तक का मेरा अध्यापन, शहर के विद्यालय में ही रहा है। मैं ग्रामीण क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त रही। इन्हें कमतर आंकती रही। मेरी बहुत बड़ी भूल थी जो मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि ये छात्र/छात्राएं भी ऐसा कर सकते हैं। इन्होंने मुझे द्रोणाचार्य और पूजा को एकलव्य बनने से बचा लिया।”
सभी सहकर्मियों ने अध्यापक कर्मवीर के लिए खड़े होकर तालियाँ बजा कर सम्मान किया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अध्यापक पवन ने कहा, “कर्मवीर अगली पार्टी आपकी तरफ बनती है।” सभी ने ठहाका लगाया और सभा विसर्जित हो गई।
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