आंचल की छाया।
मन बन परिंदा उडे आकाश में
ढूंढे छाया तेरे आंचल की
दे ऐसा पथ अपने छाया पर
उड़ उड़ कर जब मैं थक जाऊं
उस पथ पर मैं विश्राम करूं
न जाऊं मैं वापस उस पथ से
एहसास मुझे कुछ ऐसा देना
गहरी नींद में जब मैं सो जाऊं
अपने आंचल से दामन ढक देना।
संजय कुमार✍️✍️