आंगन को भी जरा लीप दो
बिटिया ! रांगोली रचकर तुम ,
आंगन को भी जरा लीप दो ।
मुद्दत से उखड़ा-उखड़ा ये ,
वर्षों से उजड़ा-उजड़ा ये ;
आंगन तुम्हें निहार रहा है. ।
कोमल कर-कमलों से बिटिया ,
रख तुम इस पर नेह- दीप दो ।
बस इतना ही कहना मेरा ,
आंगन को भी जरा लीप दो ।।
आज जगा लो बिटिया तुम भी ,
अन्तर्मन के मृदु-छन्दों को ।
ताकि काट सकूंगा मैं भी ,
सब अभाव को, सब फंदों को ।
मन की सुंदरता से घर को ,
नई दिशा और नयी टीप दो ।
आग्रह केवल है इतना ही ,
आंगन को भी जरा लीप दो ।
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवं शिक्षक ।