हर सुबह के बाद शाम होती है
हर सुबह के बाद शाम होती हैं
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हर सुबह के बाद शाम होती है,
हर रोज यह क्रिया आम होती है|
ढ़लते – ढ़लते ढ़ल जाता है दिन,
सूर्य परास्त कर सरेआम होती है|
पशु पक्षी लौटते हैं निज नीड़ में,
कार्य की अवधि विराम होती है|
छिपते सूरज की लाल लालिमा,
नभ – मस्तक पर बेनाम होती है|
सज संवर के दहलीज फर बैठी,
नवनवेलु दुल्हन के नाम होती है,
हर किसी को भाती है मनसीरत,
रात की खुशियां तमाम होती हैं|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)