आंखों की नशीली बोलियां
आंखों की नशीली बोलियां ,कर गई बहुत कुछ अयां
कहने को कुछ न बाकी रहा ,अब और करते बयां।
ढूंढने लगे फिर दो दिल , उड़ने को नया आसमां।
बेहतर इससे कोई नहीं ,अब उनके लिए आसतां।
बेखुदी इतनी बढ़ी कि, आंखें बन गई थी जुबां
वादे कसमें हो गई और मिल गया इक हमनवां
बयान हर दर्द किया हमने ,पा लिया मेहरबां
इश्क जो सर पर चढ़ा,इक दूसरे की बने रग ए जां।
सुरिंदर कौर