आंखों की नदी
एक नदी मेरी आंखों
में भी बहती है
कितनी बुझी अनबुझी
कहानी कहती है
कितने टेढ़ी-मेढे
रास्तों से गुजरती है
कभी पत्थरों से टकराती है
लेकिन किसी से कुछ ना कहती है
हर कुछ सह लेती है
कभी आसमा के सूरज को
अपने अंदर भिगोती है
कभी चांद की शीतलता में
धीरे से सोती है
कभी सुनहरी चमकती है
कभी मेखला को ओढ़ती है
कभी श्वेत चांदनी में
पुष्प सेज में सोती है
कभी तेज रफ्तार होती है
तो कभी सुस्त रफ्तार होती है
कभी इसकी तेज धारा
कभी जिंदगी की किताबों को
कभी दिल को भिगोती है
कभी प्यार के पलों के
नीचे बह लेती है
कितने कहे अनकहे
किस्से सुनाती है
ढली शाम चुप सी होकर
धीरे से सो लेती है
मेरी आंखों की नदी
मेरे दिल की बात कहती है ।