आंखों की खुमारी
****** आँखों की खुमारी *******
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आँखों की खुमारी से होकर मदहोश
कहाँ रहा अब हुस्न दीवाने को होश
रफ़्ता रफ़्ता तुम हो सांसों में समाए
झट से आ जाओ ख़ाली है आग़ोश
नशीली आँखों ने लूटा मेरा सुखचैन
प्रेम तरंगों ने भर दिया है नया जोश
चाँद सा सुंदर चंद्रमुखी हसीन मुख
वन में विचरण करता जैसे खरगोश
गेसुओं की घनी छाँव का है साया
हमसाया हो मेरा करता हूँ उदघोष
मनसीरत के दिल की हो तुम रानी
वादियों सा हुस्न देता है मुझे संतोष
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)