आँसू से बढ़कर नहीं, कोई जग में मीत(दोहा ग़ज़ल)
आँसू से बढ़कर नहीं, कोई जग में मीत।
दुख हो या सुख की घड़ी, सदा निभाते प्रीत।।
छम छम छम छम कल्पना, करने लगती नृत्य।
गाती हैं बूंदें टपक, जब सावन का गीत।।
झुकती उठती जब नज़र,जाती दिल के पार।
भर देती है वो मधुर, धड़कन में संगीत।।
अपने भी देते नहीं, बुरे वक्त में साथ।
उगते सूरज को नमन, है दुनिया की रीत।।
हर मौसम में ही रहें, लोग बड़े बेचैन।
कभी सताती गर्मियाँ, कभी डराता शीत।।
ये तन होगा क्षीण जब, प्राण जाएंगे छूट
गिर जाते हैं शाख से, पत्ते पड़कर पीत
नहीं ‘अर्चना’ छोड़ना, धीरज का तू हाथ।
आज मिली यदि हार है, होगी भी कल जीत।।
24-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद