आँधियों में लौ जलाने के लिए
डर त्याग कर लड़ जाइए डर को मिटाने के लिए
घर से निकल कर आइए घर को बचाने के लिए
खामोश रहना हद से ज्यादा बुज़दिली है आजकल
कर दो धमाका कोई बहरों को सुनाने के लिए
लुटती रही मासूमियत दिल्ली से लेकर आगरा
सरकारी अमला रह गया बस दुम हिलाने के लिए
हमको डराते हो भला क्यों नाम लेकर मौत का
हम तो खड़े ही हैं यहाँ पर सिर कटाने के लिए
सड़कों पे जब भी आयेंगे घर छोड़कर ये सिरफिरे
इतिहास खुद बन जायेगा सारे जमाने के लिए
हम तो सँभल जायेंगे फिर भी जंग लड़कर बाद में
हो जाओगे मोहताज पर तुम दाने-दाने के लिए
कह दो हवाओं से जरा औकात में रहकर चलें
आये हैं हम फिर आँधियों में लौ जलाने के लिए