आँचल का एहसास
माँ ! मुझको याद नही परंतु, ऐसा पल आया होगा।
प्रसव-वेदना ने पल-पल हि, तुझको तड़पाया होगा।।
पाकर गोदी में मुझको फिर, मन यूँ हर्षाया होगा।
सारे जहान का सुख माते, उस पल ही पाया होगा।।
रोने पर मेरे भूल दर्द, सीने से लिपटा मुझको।
अपने मधुर स्वर से तूने, माँ लाल बुलाया होगा।।
महत्व आँचल का ये तेरे, उस पल समझी तू माते,
ओढ़ा के आँचल से पहला जब दूध पिलाया होगा।।
ममता से भरते हि पेट मन, मीठे सपनों का परिचय,
आँचल की छाँव अनुभव सुखद, मुझको करवाया होगा।।
छाँव में आँचल की खिलाकर, बड़ा किया तूने मुझको।।
सींच-सींच कर रक्त खुदी का, राजसी सजाया होगा।।
खिलता मन मिटे थकन जीवन, छुअन मात्र से तेरे माँ।
“जय” गाथा गाने माता की, मुझे पुत्र बनाया होगा।।
सन्तोष बरमैया “जय”