आँगन मधुबन करते जाओ
आँगन मधुबन करते जाओ
जाना है ? जाओ प्राण मगर
बस इतना सा करते जाओ ।
साँसों के इस रीते घट में
जीवन- अमृत भरते जाओ ।।
जाने कल गाये कि न गाये
बुलबुल मेरे मन के द्वारे
छोड़ कली भी जाए शायद
हृदय तड़पता शूल सहारे
यह भी मुमकिन आँसू आँजे
हर रात चाँदनी नैनन में
जहर घोलदे देख अकेला
मौसम मदमाती धड़कन में
इसीलिए जलते अधरों पर
हिम-सा चुम्बन धरते जाओ ।
जाना है….
हो सकता है घटा प्रेम की
घूँघट खोले बिन ही जाए
बदली भी अपनी चितवन से
प्रीत माधुरी ना बरसाए
जहाँ खेलतीं अभी बहारें
संभव है कल खेलें जाले
वैर बाँधले पवन बसंती
आँगन आँधी डेरा डाले
इसीलिए खुशबू से अपनी
आँगन मधुबन करते जाओ ।
जाना है…
हर दर्पण की धूल झाड़ दे
ऐसी उपकारी हवा कहाँ
गले लगाले हर रोगी को
मिलती है ऐसी दवा कहाँ
हर कंगन को मिले कलाई
कहाँ भला ऐसा होता है ?
स्वप्न बहुत कम बसे पलक पर
आँसू ही ज्यादा सोता है
इसीलिए आहत पलकों पर
सपने अपने धरते जाओ ।
जाना है….
अशोक दीप
जयपुर