आँख से अब नमी नहीं जाती
आँख से अब नमी नहीं जाती
लब से भी तिश्नगी नहीं जाती
तुम सताओ भले हमें जितना
बेरुख़ी हमसे की नहीं जाती
वस्ल का वक़्त यूँ गुज़र जाता
बात दिल की कही नहीं जाती
इश्क़ मिटने का इक जुनूँ है बस
आशिक़ी यूँ ही की नहीं जाती
यूँ समाई है मेरी रुह में तू
दूर मुझसे कभी नहीं जाती
सी तो लें हम ज़ुबान अपनी पर
सच की ख़ातिर ये सी नहीं जाती
घर की दीवारें हैं बहुत ऊँची
घर में अब धूप भी नहीं जाती
पी तो लें हम भी रोज़ रोज़ मगर
रोज़ कडुवी तो पी नहीं जाती
ज़िन्दगी जिस तरह कहे दुनिया
हमसे ‘आनन्द’ जी नहीं जाती
– डॉ आनन्द किशोर